अमेरिका-भारत के बीच बढ़ती दरार: व्यापार युद्ध का नया दौर?'

INTERNATUNAL

10/25/2022

'अमेरिका-भारत के बीच बढ़ती दरार: व्यापार युद्ध का नया दौर?'

अमेरिका-भारत व्यापार तनाव: 50% टैरिफ का झटका और भारत की जवाबी रणनीति

हाल ही में अमेरिकी प्रशासन द्वारा भारतीय सामानों पर 50% का टैरिफ लगाने का फैसला दोनों देशों के बीच व्यापार संबंधों में एक बड़े बदलाव का संकेत है। यह निर्णय 27 अगस्त, 2025 से प्रभावी हो गया है, जिसने भारतीय निर्यातकों और अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। यह टैरिफ दो हिस्सों में लागू किया गया है: एक मौजूदा 25% शुल्क, और दूसरा भारत द्वारा रूस से तेल और रक्षा उपकरण खरीदने के कारण लगाया गया अतिरिक्त 25% शुल्क, जिससे कुल टैरिफ 50% हो गया है।

इस फैसले के पीछे का मुख्य कारण भारत की रूस के साथ व्यापारिक साझेदारी है, जिसे अमेरिका अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति के लिए खतरा मानता है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के प्रशासन ने इसे एक 'दंडात्मक कार्रवाई' बताया है। यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब भारत और अमेरिका एक द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) पर बातचीत कर रहे थे, लेकिन अब यह बातचीत भी फिलहाल स्थगित हो गई है।

भारतीय निर्यात और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका के इस कदम से भारत के लगभग $60.2 बिलियन के निर्यात पर सीधा असर पड़ेगा। सबसे अधिक प्रभावित होने वाले क्षेत्र वे हैं जो श्रम-गहन हैं, जैसे कि कपड़ा, रत्न और आभूषण, समुद्री भोजन, और चमड़े के उत्पाद। इन उद्योगों में काम करने वाले लाखों लोगों की नौकरियां खतरे में हैं। विशेषज्ञों का अनुमान है कि प्रभावित क्षेत्रों में निर्यात में 70% तक की गिरावट आ सकती है, जिससे भारत की समग्र जीडीपी वृद्धि दर 0.4-0.5% तक कम हो सकती है। तिरुपुर, नोएडा और सूरत जैसे प्रमुख कपड़ा और परिधान निर्माण केंद्रों में उत्पादन पहले ही रुक गया है।

भारत सरकार की प्रतिक्रिया और आगे की रणनीति

अमेरिका के इस टैरिफ के जवाब में भारत सरकार ने जवाबी कार्रवाई नहीं करने का फैसला किया है। इसके बजाय, सरकार ने भारतीय निर्यातकों को इस झटके से बचाने के लिए एक बहु-आयामी रणनीति तैयार की है। वाणिज्य मंत्रालय ने 'निर्यात संवर्धन मिशन' नामक ₹25,000 करोड़ की योजना शुरू करने का प्रस्ताव रखा है। इस मिशन का उद्देश्य निर्यातकों को वित्तीय सहायता, नियामक समर्थन, नए बाजारों में विविधता लाने और 'ब्रांड इंडिया' को बढ़ावा देना है। सरकार ने यह भी आश्वासन दिया है कि वह उद्योग के प्रतिनिधियों के साथ लगातार संपर्क में है और उनकी चिंताओं को दूर करने के लिए काम कर रही है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस स्थिति को 'आर्थिक स्वार्थ' के युग के रूप में वर्णित किया है, जहां राष्ट्र अपने हितों को प्राथमिकता देते हैं। उन्होंने भारत की सहनशीलता पर जोर दिया और कहा कि "दबाव कितना भी ऊंचा हो, भारत उसे झेलने की ताकत बनाए रखेगा।"

आगे का रास्ता

अमेरिकी अधिकारियों, जैसे कि ट्रेजरी सेक्रेटरी स्कॉट बेसेंट ने भी स्वीकार किया है कि भारत और अमेरिका के संबंध "जटिल" हैं, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि दोनों देश अंततः एक साथ आएंगे। इस बीच, भारत ने अपने "रेड लाइन" को स्पष्ट कर दिया है, जिसमें किसानों और मछुआरों के हितों की रक्षा करना शामिल है। यह देखना बाकी है कि दोनों देश इस व्यापारिक गतिरोध को कैसे हल करते हैं। फिलहाल, भारतीय निर्यातकों के लिए यह एक मुश्किल समय है, लेकिन सरकार उन्हें सहारा देने के लिए प्रतिबद्ध है।

Related Stories